अगर हम अंग्रेज़ होते तो लिखते कि Travelling to the most notorious part of India, which is Bihar. लेकिन हम अभी अंग्रेज़ नहीं हुए हैं तो कहना ये है कि इस बार यात्रा बिहार और झारखंड की है. जो हम दोनों के लिए जड़ों की ओर लौटने जैसा है.
झारखंड-बिहार की यात्रा को लेकर डरे हुए तो नहीं हैं लेकिन हां आर्टोलॉग और उसके रिस्पांस को लेकर थोड़ी दुविधा ज़रुर है. इस बार मामला थोड़ा अलग भी है.
वैसे इस दुविधा को दूर करने के लिए विकास कुमार ने खूब तस्वीरें खींची. हम अक्सर जब तनाव में होते हैं तो विकास आ जाता है और फोटो खींच कर मन हल्का कर देता है. सारी तस्वीरें विकास की ही ली हुई हैं.
बिहार में वो लोग हमारी मदद कर रहे हैं जिनसे फेसबुक के ज़रिए मित्रता हुई है और उन्होंंने आर्टोलॉग को बिहार ले चलने की बात की. चाहे वो गिरिन्द्र हों, बिदेशिया रंग हों, अमित आनंद हों या फिर शेखर हर्षवर्धन हों.
जाना इलाहाबाद, बनारस भी था लेकिन छु्ट्टियां इतनी भी नहीं मिलती है.
वैसे हम जानते हैं कि यात्रा शुरु होते ही जे के लिए वो ही सवाल फिर आएंगे. उन्हें इतनी छुट्टी कैसे मिल जाती है…आपसे इर्ष्या होती है आदि आदि.
इन सवालों से इतर जे चिंतित है अपनी बुलेट को लेकर. गियर बॉक्स की समस्या पूरी तरह से दूर नहीं हुई है.
कल ट्रेन है और बुलेट को एक बार फिर मैकेनिक के पास ले जाना है. सबसे अधिक तनाव जे को उसी का है.
खैर रास्ता कुछ यूं है पटना से वैशाली….वैशाली से मुज़फ्फरपुर……मुज़फ्फरपुर से महिषी…..महिषी से पूर्णिया…पूर्णिया से भागलपुर…..और भागलपुर से रांची.
अब इस रास्ते में जिसे जहां रोकना हो रोक ले मिल ले…पेंटिंग हर जगह कर पाएंगे इसकी गारंटी नहीं है.
लेकिन हां आर्टोलॉग के बारे में बात ज़रुर कर पाएंगे. कोई एक रात रोक ले…कोई दिन का भोजन करवा दे…कोई रात का खाना खिलवा दे…
समझिए कुछ जिप्सियों जैसा ही मामला रहेगा.
भागलपुर से रांची के बीच में कहीं रुकने की जगह अभी तक मिली नहीं है. अगर उस रास्ते में कोई मित्र हो तो हमें रोक सकता है. एक रात उनके घर बिताएंगे.
बाद बाकी झारखंड में जे रहे हैं लंबे समय तक. जमशेदपुर के पास जादूगोड़ा में और मीनाक्षी भागलपुर के पास सुल्तानगंज में.
इस यात्रा में अपनी जड़ों से सीखने को बहुत कुछ मिलेगा. इसी उम्मीद में यात्रा शुरु करते हैं और आपसे मांगते हैं शुभकामनाएं.
हमारे रंग अब शुरु होते हैं. ठीक होली के बाद…हमारी रंगों की होली कई हफ्तों तक चलेगी.