अक्सर ही कोई बुलाता है…अपने घर…याद नहींं प्रियंवद ने कैसे बुलाया था…पर इतना याद है कि फोन पर बात करते समय प्रियंवद संयत और अत्यंत मधुर लगे थे….बात कैसे बढ़ी ये भी याद नहींं..लेकिन पहुंच गए थे हम पेंटिंग करने…..हम अपना अनुभव इस ब्लॉग के बाद साझा करेंगे लेकिन पहले प्रियंंवद और विभावरी ने जो लिखा है वो पढ़ा जाए.
यह कहानी उन तीन लोगों की है जो आपस में बेइन्तेहाँ प्यार करते हैं. एक दूसरे के साथ हजारों मील की दूरी तय कर चुके ये तीन प्रेमी हैं- जे सुशील, मीनाक्षी झा और उनकी हरी बुलेट!
पिछले दिनों ‘प्रेमोत्सव 4’ के सिलसिले में इनका हमारे घर पर आना हुआ. इन तीनों की केमिस्ट्री गज़ब की है!!! दो घर के भीतर पेंट कर रहे होते हैं तो तीसरी घर के बाहर होकर भी दोनों की बातों में हर वक़्त इनके साथ होती है! हरी बुलेट के लिए जे और मीनाक्षी का प्यार यूँ ही नहीं है! वह उन दोनों की हमराह है…न जाने कितने दुर्गम इलाकों तक पहुँच को इसने मुमकिन बनाया है इन दोनों के लिए!
अब ज़रा जे और मीनाक्षी के बारे में भी बात कर लें. दोनों के बीच एक ऐसा तालमेल है जो दोनों की शख्सियत को बैलेंस करता है. जैसे-दोनों ही बातूनी हैं लेकिन अगर एक बोल रहा है तो दूसरा कम बोलने का प्रयास करेगा ताकी पहले की बात पर पूरा फोकस हो सके.
या फिर पेंटिंग करते वक्त पहला, दूसरे को उन बिंदुओं पर सहयोग करेगा जहाँ उसकी ज़रूरत है या फिर बात-चीत के दौरान किसी भी एक के आउट ऑफ कंट्रोल हो जाने से पहले ही दूसरा उसे टोक देगा.
दोनों के रिश्ते में यह समझदारी देखते ही बनती है. इस समझ का यह स्तर देख कर आप भरोसा नहीं कर पाते कि दोनों के बीच नौ साल का अंतर है! बड़ा या छोटा कौन ये तो भूल ही जाइए!
दोनों के बीच ये समझ कहीं न कहीं उन संघर्षों की बदौलत भी आई है जो इन्हें एक-दूसरे को पाने के लिए समाज और पितृसत्ता के साथ करनी पड़ी.
वे तकलीफें कहीं न कहीं इनके भीतर बाकी है अभी…वो गुस्सा…वो खलिश अभी भी सालती है इन्हें! लेकिन ये गुस्सा ये खलिश और ये तकलीफें इन्हें तोड़ नहीं पायीं हैं बल्कि कहीं न कहीं इनकी मजबूती का सबब ही बनी हैं! दोनों ने अपनी सृजनात्मक ऊर्जा को पेंटिंग में बखूबी इस्तेमाल किया है.
न सिर्फ खुद के लिए बल्कि उन सबके लिए जो रंगों से जुड़ा महसूस करते हैं…जिन्हें पेंटिंग से खुशी मिलती है! और मैं नहीं समझती कि दुनिया में कोई भी ऐसा सहृदय होगा या होगी जिसे रंग आकर्षित न करते हों. अपवादों पर यह बात लागू नहीं होती.
मीनाक्षी एक बेहतरीन मिमिक भी हैं तो जे यानी सुशील का सेन्स ऑफ ह्यूमर गज़ब का है! पूरी पेंटिंग के दौरान दोनों के साथ हंस-हंस कर हम दोनों पागल हो गए लगते थे.
हमें ऐसा महसूस ही नहीं हुआ कि हम इन दोनों से पहली बार मिल रहे हैं! बेहद मिलनसार और सृजनात्मक ऊर्जा से लबरेज़ यह जोड़ा तमाम जगहों तक यदि अपनी कला को विस्तार दे पा रहा है…हमारे घर की दीवार जैसी न जाने कितनी दीवारों पर सपनों के रंग भर पा रहा है तो उसके पीछे निश्चित रूप से उनका प्यार, आपसी समझ और अपने सपनों को पाने की ज़िद है!
ये ज़िद उन्हें नित नयी ऊचाईयां दे इन्हीं शुभकामनाओं के साथ…
प्रियंवद-विभावरी