इस हफ्ते बिहार और झारखंड से अनुभव चिन्मय और बिदेशिया रंग उर्फ निराला जी का. जो समय उन्होंने बिताया आर्टोलॉग के साथ.
पूर्णिया में आर्टोलॉग और जे दंपत्ति के साथ काम करना अनोखा अनुभव रहा.
शुरु से लेकर अंत तक कई नई चीज़ों के बारे में जानने का मौका मिला. रंग को जानना, उससे बनने वाली आकृतियों को समझना. ये अजीब सी दंपत्ति है जो बुलेट से घूमती है.
ये गांव के लोगों से भी कनेक्ट कर जाते हैं और शहर के लोगों से भी. मैंने व्यक्तिगत तौर पर उनके साथ तीन चार दिन बिताए और बहुत कुछ सीखा.
गांव वालों से मासूम सवाल पूछना और उन्हें कुछ ही देर में अपना बना लेना कोई इनसे सीखे.
जे नौकरी करते हैं रोजमर्रा का काम करते हैं उसके साथ ट्रैवल का अपना शौक भी पूरा करते हैं ये अनोखी बात है. नौकरीपेशा लोगों को उनसे सीखना चाहिए. मीनाक्षी अपने आर्ट को लेकर जिस तरह से गांव गांव शहर शहर घूम रही है और आम लोगों से इंटरैक्ट कर रही हैं वो काबिले तारीफ है.
आज भी उन गांवों में लोग जे दंपत्ति के बारे में पूछते हैं जहां उन्होंने पेंटिंग की थी.
——————चिन्मय एन सिंह, श्रीनगर, पूर्णिया, बिहार
आर्टोलॉग-आर्ट वाले लोग. इस खूबसूरत और आकर्षक नाम से परिचय बाद में हुआ,इस नाम को गढ़ने,खड़ा करने और बढ़ानेवाले लोगों से परिचय पहले हुआ.
मिलने से पहले लगता था कि आजकल तो आर्ट पर बात करना,आर्ट पर काम करना पैसन काम फैशन ज्यादा है और आर्टलोग के जरिये जे सुशील और मीनाक्षी भी कुछ ऐसा ही कर रहे होंगे. वर्षों से हो रही बात,मुलाकात में बदली।रांची में पहली दफा मिले आर्टवाले लोग यानि सुशिल और मीनाक्षी से.
रांची में पहली मुलाकात ने धीरे धीरे नही,तेजी से बनी बनायी धारणाओं को तोडना-बिखेरना शुरू किया.
पहली मुलाकात रांची के एक मोहल्ले की गलियों में हुई. कोई दो घंटे हम,यानि मैं,मीनाक्षी और सुशील मोहल्ले की सड़क पर टहलते हुए बात करते रहे।मीनाक्षी बताती रहीं कि वे आर्टलोग के जरिये क्या करती हैं,क्या करना चाहती हैं.
मीनाक्षी की बातें बातचीत से ही समझ में आ गयी थी लेकिन बातचीत के बाद अगले दिन से जब मीनाक्षी-सुशील के साथ उनके कार्यस्थल पर गए तो एहसास हुआ कि आर्टलोग रंग को सबसे सरोकारी रूप मे फैला रहा है.
रांची के आँचल शिशु आश्रम अनाथालय से लेकर बिहार के जहानाबाद जिले के सुदूरवर्ती गांव मुठेर तक आर्ट वाले इन लोगों के साथ रहा. आर्टलोग तो आर्ट फॉर ऑल की बात करता है. यही उसका ध्येय वाक्य है. यह काम आर्टलोग शिद्दत से कर भी रहा है.
रंग की दुनिया से एकदम अजनबी लोग रंग भर रहे हैं. रंगों के जरिये नीरस होते समय समाज को सरस बना रहे हैं. आर्टलॉग का काम देखते हुए लगता है जैसे मीनाक्षी उस्ताद बिस्मिल्लाह की शिष्य रही हो और उनके ही सपने को पूरा करना चाहती हो.
उस्ताद कहते थे, ”बस समाज को कला से जोड़ दो,हर किसी को कलानुरागी बना दो,अपने आप बहुत कुछ पटरी पार आ जाएगा. कला से सरोकार रखनेवाला समाज सरोकारी होता है.वह समाज उत्साही होता है,उन्मादी नही ”
सुशील मीनाक्षी और आर्ट वाले लोग के सारे लोग रंग को सरोकारी बना रहे हैं. रंग के जरिये बदलाव की यह कोशिश प्रेरक है. यह बदलाव महज बहुत सूक्ष्म है लेकिन इसमें विस्तार की अपार सम्भावनाये हैं. किसी को कूची ब्रश पकड़ाकर या कूची ब्रश न हो तो हाथों में ही रंग लगाकर उसे रंगों से खेलने और रंगों से साधने के लिए प्रेरित करना, उसे एहसास कराना कि तुम भी कलाकार हो,दुनिया का हर कोई कलाकार है,कोई मामूली काम नहीं.
इसका असर तो हमने खुद अपने आँचल शिशु आश्रम में प्रत्यक्ष देखा है।हमारे आश्रम में सुशील मीनाक्षी आये थे. वे दिन भर बच्चों के संग रंग को माध्यम बनाकर खेलते रहे थे. सुशील मीनाक्षी अगले दिन चले गए आश्रम से लेकिन हमारे बच्चे उसके बाद से रंगों से खेलने के अभ्यस्त हो गए हैं. वे अपने आश्रम की दीवारों को खूबसूरत बना चुके हैं.
————निराला, रांची, झारखंड
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Meenakshi
great post