हुसेन की कहानी, मक़बूल की ज़बानी

Hussain Bookहुसेन के बारे में बहुतों ने बहुत कुछ लिखा होगा लेकिन हुसेन के बारे में जो मकबूल ने लिखा है उसका कोई सानी नहीं है. मकबूल …कौन…अरे वही मकबूल फिदा हुसैन का मकबूल. जी हां ये हुसेन ही कर सकता था कि अपनी जीवनी अपनी ज़ुबानी लिखे जिसमें मकबूल बताए एमएफ हुसैन की कहानी. आज उनके जन्मदिन पर एमएफ हुसेन की कहानी अपनी ज़ुबानी  के कुछ हिस्से आप लोगों के लिए.

Hussain's sketches

दादा की ऊंगली
पकड़े एक लड़का
मां दे गई नाम मक़बूल
और
बने फ़िरते हैं
एम.एफ. हुसेन

 

कुछ वक्त गुज़रा, एक रात फ़िदा कहीं काम की वजह से घर देर से लौटा. दाएं कमरे की कुंडी खटखटाई. अंदर से ज़ैनबबीबी ने पूछा- ”कौन है रे बा?” बाहर फ़िदा ने जवाब दिया- ” तेरा मर्द हूं रे मा.” यह एक दूसरे के ‘बा’ और ‘मा’ की तकरार में टपक पड़े मक़बूल, ब्याह के ग्यारहवें महीने, शायद ग्यारहवीं शरीफ़ का दिन होगा, बस पैदा हो गए.

Hussain's horses

अच्छन मियां उबलती हुई चाय मिट्टी के सकोरे में उंडेलते हुए हमारे दादा से कहने लगे- ”भई, अब्दुल, आजकल नालबन्दी का काम कुछ ठंडा चल रहा है. रेज़ीडेन्ट साहब के नाज़िर को ही ले लीजिए, कहां गई उन की वह बग्घियां, दर्जन घोड़े, अब तो सुना है दो दो मोटर गाड़ियां हैं.” अब्दुल ने जवाब में कहा- ”हां, अब यह गोरे लोग न मालूम इस देश में कितनी धूल उड़ाएंगे.”

Hussain's parents in sketch

बाप की शादी में बेटा दीवाना
इंजन ने कूक लगाई और सिद्धपुर प्लेटफ़ार्म से डोली बना डिब्बा इंदौर के लिए चल पड़ा. लड़का अब खिड़की के बाहर दौड़ते चांद, सूरज, गांव, बयाबान नहीं देख रहा. उसकी टिकटिकी दुल्हन के ख़ूबसूरत गोरे गोरे हाथों और सुर्ख़ लंहगे की गोट से झांकते पैरों पर लगी है. बड़ी बड़ी आंखें नींद से भरे करोटे, बोझल, झुका चेहरा, दादा की गोद में सामने बैठा लड़का, इतने करीब से और इतनी देर तक उसने किसी औरत को कभी नहीं देखा.

Hussain and horse

अब सोचा जाए तो ताज्जुब होता है कि उस ज़माने के इंदौर जैसे कपड़ा मिल माहौल में, काज़ी और मौलवियों के पड़ोस में एक बाप कैसे अपने बेटे को आर्ट की लाइन अख़्तियार करने पर राज़ी हो गया. जबकि यह आर्ट का शगुल राज़े महाराज़े और अमीरों की अय्याश दीवारों का सिर्फ लटकन बना रहा आधी सदी और ज़रुरत थी कि आर्ट महलों से उतरकर कारखानों तक पहुंचे.
मकबूल के अब्बा की रोशनख्याली न जाने कैसे पचास साल की दूरी नज़रअंदाज़ कर गई और बेन्द्रे के मशवरे पर उसने अपने बेटे की तमाम रिवायती बंदिशों को तोड़ फेंका और कहा-”बेटा जाओ, और ज़िंदगी को रंगों से भर दो.”

hussain and manakeshwar

मक़बूल का ज़िगरी दोस्त मानकेश्वर, इंदौर स्कूल में साथ पढ़े. उसे भी पेंटिंग का शौक मगर गीता और पुराण ज़बान पर. अक्सर दोनों साथ रामलीला का नाटक देखने जाया करते. मक़बूल के नाना सिद्धपुर गुज़रात में मस्ज़िद के पेश इमाम, इसी वजह से मक़बूल को छह साल की उम्र से ही कुरान की आयतें ज़बानी याद. अनेक दीन और धर्म की बातें सुनी और पढ़ीं. मानकेश्वर की दोस्ती और पचास बरस की उमर तक का साथ, मक़बूल पर रामायण और महाभारत के चरित्रों का गहरा असर पड़ा जिसे बरसों बाद एम.एफ. हुसेन ने, उन्हें आजकल की ज़बान में रंग रेखा और रुप देकर कैनवास पर उतारा.

Hussain's Hanuman
लोहियाजी ने लड़के की पीठ थपकी जैसे शाबासी दी हो और विषय बदलते हुए पूछा- ‘यह जो तुम बिड़ला और टाटा के ड्राईंगरुम में लटकने वाली तस्वीरों में घिरे हो, ज़रा बाहर निकलो. रामायण को पेंट करो. इस देश की सदियों पुरानी दिलचस्प कहानी है. गांव गांव गूंजता गीत है, संगीत है और फिर इन तस्वीरों को गांव गांव ले जाओ. शहर के बंद कमरे जिन्हें आर्ट गैलरी कहा जाता है, लोग वहां सिर्फ पतलून की जेबों में हाथ डाले खड़े रहते हैं. गांव वालों की तरह तस्वीरों के रंग में घुलमिल कर नाचने गाने नहीं लगते.”
लोहियाजी की यह बात लड़के को तीर की तरह चुभी और चुभन बरसों रही. आखिर लोहिया जी की मौत के फ़ौरन बाद उनकी याद में रंग भरे और कलम लेकर बदरी विशाल की मोती भवन को तकरीबन डेढ़ सौ रामायण पेंटिंग से भर दिया. दस साल लगे. कोई दाम नहीं मांगा. सिर्फ लोहियाजी की ज़बान से निकले शब्दों का मान रखा.

Hussain's Marriage
निकाह से एक घंटे पहले मक़बूल सिनेमा का बैनर पेंट कर रहा था. इत्तेफाक देखिए कि फिल्म का नाम ‘लगन ‘ न्यू थियेटर की फिल्म जो दूसरे दिन मिनर्वा थिएटर में रिलीज़ होने वाली थी. मशहूर अभिनेत्री काननबाला का चेहरा दस फीट लंबे चौड़े बैनर पर उतार रहा था. आधी खुली नीली आंखें, गुलाबी गाल, पीली पेशानी और अधखुले होंठों पर मचलता नगमा. उस पर मक़बूल के ब्रश का तूफानी नृत्य.

Fazila and Hussain's six kids

जब भी हुसेन के ब्रश से कोई अहम पेंटिंग बनी तो यह ज़रुर हुआ कि फ़ज़ीला ने जच्चाखाने जाकर, हुसेन चाहे जहां भी हों, उन्हें तार से एक नए बच्चे के पैदा होने का ऐलान किया. इस तरह से हुसेन सिर्फ़ छह पेंटिंग करने का हक़दार है. बाकी ज़िंदगी में जितनी पेंटिंग की उनका जमादार.

Hussain's sketch of Rashida sidiqui
”मक़बूल अब एम. एफ. बना दिया गया है और बेशक मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे अंदर एक छोटा सा मक़बूल खेल रहा है.” वह बोली ” चलो अच्छा हुआ आपकी हिलमैन कार का ब्रेक डाउन ठीक मुकाम पर हुआ और कुछ देर ठहरने का मौका मिला.” एम.एफ. ने कहा, ”हां पहुंचा तो ठीक मुकाम पर मगर वह दिलचस्प बातें सुन नहीं पाया जो तुम्हारे और तस्वीरों के दरम्यान हुईं.”

वह बोली ”यह सुनकर आप खुश होंगे कि इन बातों को अक्सर मैं लिख लिया करती जो आज एक किताब की हैसियत में आपको पेश करती हूं. किताब का नाम ‘In conversation with hussain paintings.’ किताब आपके सामने है. एम.एफ. हुसेन के सिवा इसका सही हकदार कौन हो सकता है. शायद ये किताब आपके आने का इंतज़ार कर रही थी. इसी को लिए गोमती किनारे बैठी रही. इसी को लिए जमुना किनारे पहुंची और आज आप पहुंचे हैं. पहली किताब आपकी नज़र.” एम.एफ़ ने पूछा ”मगर ये नज़राना कौन पेश कर रहा है?” किताब पर लिखा है ”पढ़ लीजिए.”

एम.एफ़ ”ओह अच्छा, आपका नाम राश्दा सिद्दीकी है.”

( इस ब्लॉग में लगी सारी तस्वीरें और लिखावट हुसैन की पुस्तक ” एम.एफ. हुसेन की कहानी अपनी ज़ुबानी” से ली गई हैं. पेंटिंग्स भी हुसेन की ही हैं इसी पुस्तक से. वाणी प्रकाशन से छपी इस पुस्तक का लेआउट और हिंदी कैलिग्राफी राश्दा सिद्दीकी की है. यह पुस्तक 17 सितंबर 2002 में पहली बार प्रकाशित हुई थी.)