आप लोगों ने अक्सर जे सुशील और मीनाक्षी जे का लिखा हुआ ब्लॉग पढ़ा होगा. आज मैंने सोचा कि ये ब्लॉग मैं लिखूं….मैं…बोले तो वही हरी बुलेट. तो सुनिए राजस्थान की यात्रा मेरी जुबानी..भर्रभर्रर्रर्रर्रर्रर्र.
जाड़े की अनसुनी सी धूप…175 किलोमीटर की दूरी और ये दो पागल जने..जो पिछले कई दिनों से बेचैन थे कि कहीं दीवार रंगनी है.
अभिषेक कई महीनों से हमें बुला रहे थे खेतड़ी पेंटिंग करने के लिए लेकिन मीनाक्षी के शो..और जे की नौकरी.
तबीयत थोड़ी मेरी भी ख़राब सी थी. बैटरी में पानी कम था और कारबोरेटर में कचरा भी. जे दो बार अलग अलग मैकेनिक के पास ले जा चुका था. कारबोरेटर का कचरा साफ होने के बाद अच्छा महसूस कर रहा हूं.
खैर …सुबह रवाना हुए तो गुड़गांव तक लगा कि सांस नहीं ले पा रहा हूं. इतनी धूल की धूप
ज़मीन तक न पहुंचे. मीनाक्षी और जे का भी यही हाल था. मुंह बांधे दोनों धीरे धीरे मेरे साथ चल रहे थे.
रेवाड़ी पहुंचने के बाद थोड़ी सांस में सांस आई. थोड़े ऊबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए शाम तक पहुंचे तो पता चला कि यहां गांधी फेलोज़ के साथ रुकना है जिनमें सबके पास मोटरसाइकिल थी..हां उनकी मोटरसाइकिल मेरे जितनी सुंदर नहीं थी.
सबने मुझे प्यार से देखा और दुलार भी किया. दूसरे दिन सुबह किले की सवारी थी. सारी गाड़ियां हांफ गई लेकिन मुझे बहुत मज़ा आया.
फिर पहुंचे स्कूल भड भड भड करते हुए. वो रास्ता सुहाना था पहाड़ों के बीच से श्योलपुर गांव. बच्चों ने जो स्वागत किया वो तो आप पूछो मत. तस्वीरों में देख लो.
मैं तो छांव में खड़ा हो गया आराम करने…और जे-मीनाक्षी लग गए काम में.
बच्चों से रंग करवाने में….बच्चों को गाने सुनाने में…रेलगाडी बनाने में….खूब मस्ती हुई…मैं कोने से नीले हरे पीले रंग देखता रहा और अपने हरे रंग पर इतराता रहा.
हां बच्चों के साथ जे इतना मगन हो गया कि उसने मुझे दिन में एक बार भी दुलार नहीं किया तो शाम को मैंने भी सोचा कि स्टार्ट होने में मज़ा चखाऊंगा.
दोपहर से शाम कब हुई पता नहीं चला…बच्चों ने स्कूल का स्टेज भी रंग दिया था और लगभग सारी दीवारें भी..
चलने की बारी आई तो देखा जे और मीनाक्षी खुश थे…मैंने स्टार्ट होने में थोड़ी आनाकानी की लेकिन फिर शुरु हो गया क्योंकि वापसी का सुंदर सा रास्ता जो तय करना था.
स्कूल से बाहर निकले तो मैं अवाक रह गया…सामने की टंकी पर किसी बच्चे ने मेरी भी फोटू बना दी थी..हां जी बुलेट की….
बस एक गड़बड़ थी उस पर किसी कंपनी का नाम लिख दिया था.
कोई बात नहीं……बच्चे हैं बच्चों से क्या नाराज़गी….लेकिन एक बात है..
बच्चे सिर्फ जे और मीनाक्षी को ही नहीं मुझे भी प्यार करते हैं…..है न…और ज़ाहिर है आप लोग जो ये ब्लॉग पढ़ रहे हैं वो तो मुझे प्यार करते ही हैं.
कोलियान नगर का स्कूल
ये वाला स्कूल तो शहर में ही था. स्कूल छोटा सा था और बच्चे भी कम.
जे थोड़ा तनाव में था कि आज क्या बनेगा. मीनाक्षी चिल्ड थी मेरी तरह कि कुछ न कुछ तो बन ही जाएगा.
ये जे सोचता बहुत है…लेकिन गजब गजब चीज़ सोच लेता है..बच्चे आए….गांधी फेलोज़ ने गाने सुनाए..सबमें ऊर्जा भरी गई..मुझे लगा अब बच्चों में इतनी ऊर्जा आ गई है तो वो कहीं मेरे साथ दौड़ न लगा लें.
लेकिन सब लाइन बनाकर दीवार के पास चले गए. फिर सब बतियाने लगे. मैं सुन नहीं पा रहा था फिर मैंने देखा कि सारे बच्चे अलग अलग बैठ गए ग्रुप बना कर.
मीनाक्षी ने कुछ रंग लिया और हरे रंग की रेखा बनने लगी…..वाह वाह ..हरा रंग मेरा भी और इस पेंटिंग का भी….अरे ये तो नाव जैसा कुछ बन रहा है…..
ओहो हरी नाव…बन रही है..अच्छा आइडिया है रेगिस्तान में नाव बनाने का..और वो भी हरी नाव..माने हरियाली वाली नाव.
जे से पूछूंगा आइडिया कैसे आया था नाव बनाने का…अब एक बार नाव बन गई उसके बाद देखा कि बच्चे भी कुछ बना रहे हैं कागज़ से.
अरे वो भी नाव बना रहे हैं. लाल, नीली, सतरंगी नाव..ये सारी नावें बड़े नाव पर लगेंगी….मैं समझ गया था…बहुत चतुर हूं मैं.
मतलब कोलियान नगर में मीनाक्षी ने कलाकारी दिखाई है बच्चों की मदद से. जे तो खेल रहा था बच्चों के साथ…उसका काम तो ब्लॉग लिखने का है जो बाद में लिखेगा….
कोलियान नगर का काम जल्दी खत्म हुआ तो हम लोग गए मरुस्थल देखने…छोटा मगर खूबसूरत रेगिस्तान है खेतड़ी में भी और हां एक वीरान पुरानी सी तांबे की खान भी देखी हमने.
बहुत सुंदर…राजस्थान…का सफर सुंदर रहा…फिर आना चाहेंगे हम तीनों…..जे सुशील…मीनाक्षी और मैं..आपकी हरी बुलेट.