जून की गर्मी, बुलेट की सवारी और 274 किलोमीटर की दूरी….धूल भरी आंधियों के बीच आंखें मिचमिचाते…धूप सोखते….रुकते रुकाते…शाम ढले पहुंचे थे उस घनी छांव में जिसका नाम था वीरेंद्र और रेणु सांगवान.
घग्घर नदी के किनारा….डूबता हुआ सूरज और अंकल आंटी….एक आइडियाज़ से भरपूर दूसरी शांत…मुस्कुराती…ममत्व से लबरेज़.
सितारों से स्वागत और फिर चाय का गिलास…और बातें बातें बातें… बस बातें. पांच भाईयों का एक परिवार जहां दादा मिलिट्री में थे..पिता स्कूल में और पांच भाईयों में तीसरे नंबर पर वीरेंद्र अंकल जो दादा जी की इच्छानुसार मिलिट्री में गए.
दूसरी तरफ पांच बहनों वाली रेणु आंटी…वो भी तीसरे नंबर की…पिता की मौत के बाद छोटी होने के बावजूद ज़िम्मेदारियां निभाने में सबसे आगे..स्कूल की प्रिंसिपल से पदोन्नति मिली ही है उनको. उन्हें देखकर ही लगता था जितना प्यार करेंगी उतना ही अनुशासन में भी रखेंगी.
फिर पता चला सत्तर के दशक में जब शादी हुई तो अंकल ने कहा था अपने दादा से कि मैं लड़की नहीं देखूंगा जो आपने तय किया वो ठीक है लेकिन रेणु आंटी ने कहा- मैं लड़का देखे बगैर शादी नहीं करुंगी. दोनों परिवारों में कई लोग सेना में हैं.
आम तौर पर सेना को लोग क्रिएटिविटी से जोड़कर नहीं देखते हैं लेकिन अंकल ने जब अपने घर में सितारों वाली लाइट, शराब की बोतल से बनी लाइट और बालकनी में पक्षियों के घोंसले दिखाए तो हमारा विश्वास फिर से जमा कि हर आदमी क्रिएटिव होता है.
आंटी का पारंपरिक कलाकारी से लगाव, उनकी खुद की एमसील से बनाई चीज़ें, रंगों से उनका लगाव और नानी के डिजाइन किए कुछ कपड़ों से उनका प्रेम हमें छू गया.
इन चीज़ों ने हमें दो बातें बताईं..एक तो ये कि हमें कुछ अनोखा बनाना होगा और दूसरा कि अगर हम कुछ बढ़िया बना पाए तो ये दोनों उसे आगे बढ़ाते रहेंगे. उनका नया फ्लैट देखने के बाद हमने पूछा था- आप क्या बनवाना चाहते हैं?
अंकल ने एक सांस में कई चीज़ें गिनवा दीं..आंटी ने ठहर कर कहा- मैं चाहती हूं कि आप एक बरगद का पेड़ बनाएं जो जानवरों, सांपों और कई जंतुओं को पनाह देता है. आंटी की ये बात इतनी खूबसूरत लगी हम सबको कि अंकल ने एकबारगी ही कहा- बरगद ही चाहिए मुझे भी.
फिर मीनाक्षी ने तय किया कि इस बार पेंटिंग नहीं कुछ अलग होगा. ब्रश का इस्तेमाल कम होगा. रस्सियों से पेड़ बनाने का आइडिया मीनाक्षी का था लेकिन उसे मज़बूत करने के लिए पीओपी, फेविकोल आदि का दिमाग कौन दे सकता था अंकल के सिवा. हमने इस कलाकृति में बस कुछ रंग जोड़े हैं. सारा काम अंकल आंटी ने ही किया है. रंग घोलने से लेकर दीवारों पर पुताई करने तक…..रस्सियों को मोड़ कर चिपकाने से लेकर उनमें हाथों से रंग भरने तक सारा काम मिलजुलकर पूरा हो रहा था. और वो भी तब जब बीच के एक दिन नए फ्लैट में हवन होना था. छोटा सा समारोह जिसमें हमें भी अपने बच्चों की तरह शामिल किया अंकल आंटी ने.
हां और ये बताना तो भूल ही गए कि ये बरगद मुख्य बेडरुम की बालकनी में बन रहा था जो बाहर से भी दिखता था. मुख्य सड़क से भी.
गर्मी में इसे पूरा करने के दौरान आंटी कब पुराने घर जाकर ठंडा पानी, चाय और उनके हाथ का बना लेमन स्कवॉश ले आती और पिला देती ये बताना मुश्किल है हमारे लिए.
वो पेंटिंग के पास न होकर भी मौजूद होती हमारे चारों ओर. फिर वो आंटी के परांठे और उस पर अंकल का मक्खन लगाना….स्वर्ग है तो पंचकूला में इसकी ब्रांच ज़रुर होगी. ये ही ख्याल आया था वहां. बरगद पूरा हो रहा था और अंकल चाह रहे थे कि कुछ और बन जाए. हमने दरवाज़े के सामने की जगह का सुझाव दिया तो अंकल ने कहा क्यों न सूरज बनाया जाए.
फिर वो लाल पीला सूरज बनाया मीनाक्षी ने.
पंचकूला में जो हमने बनाया वो कहने को तो पूरा है लेकिन हमारे हिसाब से अधूरा है क्योंकि हम जानते हैं इसमें वीरेंद्र अंकल और रेणु आंटी अपनी क्रिएटिविटी से जान डालने वाले हैं.
यही हमारा काम था लोगों के भीतर के कलाकार को थोड़ा प्रोत्साहन देना और बदले में हमने पाया ढेर सारा प्यार, अपनापन और एक और परिवार इस दुनिया में अपना कहने को.