”अबी तो मेरे को घर नय है. जबी मेरा घर होगा तो मैं बुलाएगी तेरे को. खाना भी खिलाएगी. घुमाएगी भी. मेरे घर में भी पेंटिंग करने का.”
वंदना काम वाली बाई है लेकिन दीवार पर बनती हुई बुद्ध की पेंटिंग को देखकर उसने हमसे यही बात कही.
आम तौर पर समझा जाता है कि कला आम लोगों की या कम पढ़े लिखे लोगों की समझ के बाहर की चीज़ है लेकिन हमने कभी ये नहीं माना और वंदना के इस वाक्य ने हमारी सोच को और पुख्ता किया.
पुणे के मोहनन दंपत्ति के घर में पेंटिंग करने का अनुभव अविस्मरणीय ही कहा जाएगा जिसने संभवत अगले कई वर्षों के लिए हमारी ज़िंदगी बदल दी है जिसका पता हमें भी आगे चलकर ही लगेगा.
मोहनन दंपत्ति- के पी मोहनन- जाने माने भाषाविद़, अमरीका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से भाषा विज्ञान में पीएचडी जिनके गाइड नोएम चोमस्की रहे. फिर कई वर्षों तक स्टैन्फोर्ड यूनिवर्सिटी और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में पढ़ाया. अब पुणे के आइसर (Indian Institute of Scientifi Research) में साइंटीफिक एजुकेशन पर काम कर रहे हैं.
तारा मोहनन- जानी मानी भाषाविद्- स्टैन्फोर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी. कई वर्षों तक नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में अध्यापन और अब आईसर से जुड़ी हुई हैं.
मोहनन दंपत्ति का मानना है कि ज्ञान समग्र होना चाहिए यानी अगर आपने रसायन शास्त्र में पीएचडी की है तो आपको विश्व युद्ध के बारे में भी पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए तभी सही मायनों में आप ज्ञानी माने जा सकते हैं.
दोनों पति पत्नी बच्चों में ऐसी पढ़ाई को प्रमोट करने के प्रयास में लगे हैं जो मज़ेदार हो, बच्चों को सवाल पूछने के लिए और सोचने के लिए प्रेरित करे.
हमारे चार दिन कैसे बीते वो एक ब्लॉग में बताना मुश्किल है. संक्षेप में समझिए कि हम बस सवाल ही करते रहे और दुनिया के बारे में कुछ कुछ समझते बूझते रहे.
विज्ञान, गणित और मानवता के गूढ़ रहस्यों को हंसते मुस्कुराते और मज़ाक में समझा देने वाले मोहनन अंकल पेंटिंग भी करते हैं. तारा आंटी पेंटर तो नहीं हैं लेकिन रंगों की उनकी समझ का कोई जवाब नहीं था हमारे पास.
तारा आंटी की फोटोग्राफी लाजवाब और समझाने लगें तो लगता था कि नानी मां बोल रही हों. चार दिनों में कभी माथे पर परेशानी की शिकन तक नहीं.
एक दिन मैंने मोहनन अंकल से पूछा- आपको कभी गुस्सा आता है. वो बोले- गुस्सा असल में आपकी दबी हुई कुंठा है . अगर आप गुस्सा होते हैं तो समझिए कहीं न कहीं कोई कुंठा दबी हुई है.
इस पर मैं अब भी सोच रहा हूं.
एक दिन लिफ्ट में उन्होंने पूछा -सीधी रेखा क्या होती है. सोचते रहे फिर उन्होंने ही उदाहरण देते हुए बताया- दो बिंदुओं के बीच सबसे कम दूरी. लेकिन फिर सवाल अगर जिस पेपर पर एक सीधी रेखा वो पेपर गोल कर दिया जाए तो क्या रेखा सीधी रह जाएगी.
सोचिए. सोचिए…
दीवार पर पेंटिंग
हां… मोहनन दंपत्ति के घर पर मीनाक्षी ने बुद्ध और उसके आठ चिन्हों की पेंटिंग बनाई. तारा आंटी को पता था कि उन्हें किस तरह की पेंटिंग चाहिए. ऐसा कुछ जो बगल में टंगी थंगका (बौद्ध स्टाइल की पेंटिंग जिसके विशेषज्ञ तिब्बत में हुआ करते थे. धर्मशाला मे कुछ लोग ये पेंटिंग अब भी करते हैं) पेंटिंग के साथ जा सके.
इसी कारण मीनाक्षी ने तय किया बुद्ध और उसके चिन्ह बनाने का. थोड़ा सा मधुबनी स्टाइल का टच देते हुए. थंगका के हल्के रंगों को काम्प्लीमेंट करना आसान काम नहीं था. लेकिन तारा आंटी ने रंगों के मिश्रण के ऐसे बेहतरीन सुझाव दिए कि वो काम भी आसान हो गया.
नए रंगों के मिश्रण बनाते हुए एक दिन मोहनन अंकल भी आ बैठे हमारे पास और निकाली अपनी कूचियां. खास किस्म की चाइनीज़ कूचियां और बताने लगे पेंटिंग के बारे में. बोले मैं भी पेंटर बनना चाहता था. दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट में तीन साल पढ़ाई भी की.
अब कभी कभी पेंट करता हूं. अच्छा लगता है. कूचियां पकड़ने से लेकर रंगों के बारे में वो मज़ाक मज़ाक में कई गूढ़ बातें बता गए. मसलन कि कोई पेंटिंग अच्छी क्यों लगती है. पेंटिंग का फोकस क्या और कैसे होता है.
कागज़ से दीवार तक बुद्ध और उन्हें चिन्हों का सफर एक किस्म की आध्यात्मिक यात्रा रही हम दोनों के लिए.
कहते हैं कि तारा बुद्ध का नारी रुप है. हमारे लिए मोहनन अंकल औऱ तारा आंटी बुद्ध और तारा के रुप जैसे ही रहे जिन्होंने अपनी मौजदूगी से हमारे अंदर एक प्रेरणादायी ऊर्जा भर दी.
मोहनन अंकल- तारा आंटी- आपके आशीर्वाद से यह यात्रा शुरु हुई है…जानता हूं यात्रा अच्छी रहेगी…
ब्लॉग पर आते रहें और आने वाले अनुभवों से अवगत होते रहे. हमें लिखें meejha@gmail.com पर भी. अगर आप चाहेंगे तो हम आपके घर भी आकर पेंटिंग बना सकते हैं.
What prompted me to place a reply is the flawless writing full with rhythm. I felt I was wafting in the lift with you when you mentioned of the lift, I felt I was seeing the expression of Mohanan uncle when you mention him talking about “Anger”. He concludes “anger suggests, you have some hidden frustration”.
The write-up made the blog lively.
Taking a journey through the travelogue is always fantastic. The writing and the tale of the painting are stimulating and inspiring.
You have just started the journey. Many wishes for coming days.
यात्राएं आपकी रही और सिख हमने ली❤️
सुशील झा जी कभी पेंटिंग करने हमारे यहाँ भी आइए । ताकि अपने गांव के सरकारी स्कूल में कुछ पेंटिंग लगवा सके।
बुलाने पर ही तो आएंगे.बिना बुलाए कैसे आ जाएं. ईमेल कर दें या फेसबुक पर संपर्क करें बुलाने के लिए.
शुक्रिया
आप अपनी यात्रा में अपने अनुभव और लोगों के बारे में बताने के साथ पढ़ाई की किताबे पढ़ने का जो बात लिखते हैं ये आपसे सिधा जोड़ रखता है.