गोलियां, बंदूक और रंग…ये जहानाबाद है.

meenakshi explaining about art to the kids

जहानाबाद भी चलना है. बहुत ही गरीब बच्चे वहां आप दोनों का इंतज़ार कर रहे हैं. हमारे मित्र निराला जी ने जब जहानाबाद का नाम लिया तो हमारी पहली प्रतिक्रिया थी कि जहानाबाद तो नक्सली इलाक़ा है और दूर भी होगा न पटना से
उन्होंने कहा नहीं नहीं बगल में ही है.

वाकई सिर्फ पचास किलोमीटर पटना से दूर है जहानाबाद जो कुछ साल पहले तक ही नक्सलियों का मज़बूत गढ़ माना जाता था.
थोड़ा डर भी लगा लेकिन तय किया गया कि मुठेर गांव के बच्चों से मिला जाएगा.

पटना से निकलते ही परसा, डुमरी और तरेगना और ऐसे ही कई नाम हमें बिल्कुल गांव वाले माहौल में ले गए थे. सड़क के एक तरफ रेलवे लाइन और दूसरी तरफ खेत ही खेत.

colours colours and colours

मुख्य हाईवे से सटा हुआ है मुठेर गांव. गलियों से होकर स्कूल पहुंचे तो बच्चे उत्सुकता से इंतज़ार में थे.

हमने काम तुरंत शुरु किया. मीनाक्षी ने कुछ कुछ बताना और मैंने कुछ कुछ पूछना.

बच्चों में आत्मविश्वास की इतनी कमी थी कि वो अपना नाम भी बताने में डर रहे थे. किसी बच्ची ने कहा कि डांसर बनना चाहती हूं तो सब हंस पड़े.

हमने समझाया कि ये हंसने की बात नहीं है. बच्चों के मुश्किल से पेंटिंग के लिए तैयार किया गया.

 

 

ऐसा नहीं था कि वो पेंटिंग करने के लिए तैयार नहीं थे लेकिन वो डरे हुए थे कि पता नहीं हम उनसे क्या करने को कह दें.

फिर हमने कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाए और बच्चों से कहा कि उन्हें जो मन है वो बनाएं..तो सुझाव आए….बंदूक, टैंक, डाकू, फूल, जेवर, डॉक्टर का आला, जोकर.

बंदूक और डाकू का सुझाव सुनकर मैंने और मीनाक्षी ने एकबारगी ही एक दूसरे को देखा तो साथ में आए पंकज ने कहा कि अरे मैं बताता हूं
पंकज ने बताया कि गांव का नाम मुठेर भी संभवत मुठभेड़ से आया है क्योंकि यहां अक्सर पुलिस और नक्सलियों की मुठभेड़ें हुआ करती थीं.
कितना सच है ये तो नहीं पता लेकिन हां इस बातचीत के दौरान गांव के मुखिया ने साफ साफ कहा कि कुछ ही दिन पहले इन स्कूलों में शाम घिरते ही नक्सलियों का कब्ज़ा हो जाया करता था.aeroplane

 

ज़ाहिर है गांव के भी कई परिवार नक्सली हो गए थे लेकिन अब स्थिति बेहतर है.

शायद ये एक कारण था कि बच्चों ने डाकू और बंदूकें पेंट करने का सुझाव दिया होगा. जिस बच्चे ने डाकू बनाने का सुझाव दिया उसका कहना था कि डाकू सबसे ताकतवर होता है.

खैर हमने डाकू तो नहीं बनाया लेकिन बंदूक और टैंक ज़रुर बने दीवारों पर.

गांव के मुखिया पेंटिंग्स के कार्यक्रम से इतने खुश थे कि पेंटिंग के दौरान उन्होंने भी कहा, ‘क्या मैं भी कहीं रंग भर सकता हूं.’
मीनाक्षी ने कहा क्यों नहीं…तो हुआ यूं कि बच्चों के साथ बड़े भी लग गए.

kids playing on the walls

बच्चों के साथ समय कम बीता. शाम हुई और जब रंग समेटन लगे तो हमने देखा कि कई बच्चे जो क्लास में बिल्कुल चुप थे वो क्लास के अंदर अपने ही मन से दीवारों को रंग रहे थे.

देर हो रही थी. सामान समेटना था. बच्चों ने वादा किया कि वो पेंटिंग्स पूरा करेंगे.

Our hari bhari bullet with kids

 

जो बच्चे सुबह में अपना नाम भी बोलने में शर्मा रहे थे, डर रहे थे वो अब मीनाक्षी से रंग और ब्रश मांग रहे थे.

हमने रंग और ब्रश दिए और बच्चों से ये वादा लेकर आए कि वो स्कूल को सुंदर बनाएंगे.

रास्ते भर कई बच्चे हरी भरी यानी हमारी बुलेट के पीछे भाग कर आते रहे और हिप हिप हुर्रे कहते रहे…जो हमने ही उन्हें सिखाया था.

हिप हिप हुर्रे…….

IMG_5845

5 thoughts on “गोलियां, बंदूक और रंग…ये जहानाबाद है.

  • जे सुंदर है. अच्छा है. सुकूं देता है. कैरी ऑन. गुड लक रहेगा.

  • बहुत खूब दद्दा, आपकी कोशिश एक दिन जरूर रंग लायेगी ||
    आपको और मीनाक्षी दीदी को बहुत शुक्रिया ||

  • आपका घूम घूम के पेंटिंग वाला काम वास्तव में बहुत अच्छा लगता है।हालाँकि हमें चैलेंजिंग लगता है। कैसे आप दोनों अनजानों से जुड़ जाते हैं ।

  • आपका घूम घूम के पेंटिंग वाला काम वास्तव में बहुत अच्छा लगता है।हालाँकि हमें चैलेंजिंग लगता है। कैसे आप दोनों अनजानों से जुड़ जाते हैं ।

Comments are closed.