अमरीका और मेक्सिको की सीमा पार कर के हज़ारों लोग अमरीका में बिना दस्तावेज के आ रहे हैं. ये ख़बरें पिछले छह सात महीने से लगातार पढ़ रहा था. टीवी पर लोगों की कतारें भी दिख रही थीं लेकिन जैसा कि होता है घर के ड्राइंग रूम में बैठे हुए ये ख़बरें…..ख़बरों से अधिक की अहमियत नहीं रखती हैं.
पिछले साल जुलाई के महीने में जब हम भारत में ‘आई इन टुगेदरनेस’की प्रदर्शनी कर रहे थे तो वहां एक अमरीकी प्रोफेसर जेनिफर क्लार्क से मुलाकात हुई. उन्हें हमारा काम पसंद आया और बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि वो ऐसे लोगों के साथ भी काम करती हैं जो बिना दस्तावेज के अमरीका में आ रहे हैं और ये एक बड़ी समस्या है. हमने कहा कि क्या हम उनके साथ आर्ट बना सकते हैं तो वो सहर्ष तैयार हो गईं कि वो हर संभव मदद करेंगी.
अमरीका लौटने के बाद मी ने अपने डिपार्टमेंट में ट्रैवल ग्रांट के लिए आवेदन किया जिसकी एक अपनी चयन प्रक्रिया होती है. उन्हें ये आइडिया पसंद आया और टिकट के पैसे मिल गए. जेनिफर ने कहा था कि हम उनके घर में रूक सकते हैं.
यह सब तय होने के दौरान एक रात जब हम दोनों बुतरू को सुलाकर यूं ही टीवी के चैनल बदल रहे थे तो एक डॉक्यूमेंट्रीनुमा फिल्म दिख गई एचबीओ पर जिसमें एक सोलह साल का लड़का गैंग वार में फंसने से बचने के लिए अपने देश होंडूरास से भाग कर अमरीका आता है. इस डॉक्यूमेंट्री से हमें वो जानकारी मिली कि असल में लोग क्यों भाग रहे हैं अमरीका की तरफ सेंट्रल अमरीकी देशों से खासकर होंडूरास, अल सल्वाडोर, मेक्सिको और ग्वाटेमाला.
सीमा अमरीका और मेक्सिको के बीच
खैर जिस शहर में हमें काम करने जाना था उसका नाम था हार्लिंगन जो अमरीका के टेक्सास राज्य के एक कोने पर है. टेक्सास सीमावर्ती राज्य है जिसकी सीमाएं मेक्सिको से लगी हुई हैं. अमरीका और मेक्सिको की सीमा करीब दो हज़ार किलोमीटर लंबी है और टेक्सास से कैलिफोर्निया राज्य तक फैली है.
सीमा के नाम पर कहीं कहीं लोहे की दीवार, कहीं सीमेंट की दीवार और कहीं पर रियो ग्रांडे नदी और कहीं पर सुदूर रेगिस्तान और जंगल हैं. टेक्सास राज्य की सीमा जहां हम गए थे वहां सीमा के रूप में लोहे की बनी दीवार, जंगल और रियो ग्रांडे नदी है.
दोनों देशों के बीच सीमा का बंटवारा मोटा मोटा यही है कि रियो ग्रांडे नदी ही सीमा है. अब नदी कभी कभी रास्ता भी बदल देती है थोड़ा बहुत तो समझिए सीमा बदलती है. कहीं कहीं पर गहरी खाईयां हैं और ट्रंप के दीवार के आइडिया की सबसे बड़ी आलोचना यही है कि ऐसे स्थानों पर दीवार बनाना न केवल मुश्किल है बल्कि असंभव जैसा भी है.
यहां ये बताना ज़रूरी है कि दोनों देशों के बीच दीवार बनाने का काम सबसे पहले 2005 में हुआ था टेक्सास के ही ब्राउन्सविले शहर में जहां ठीक उस सड़क के पास लोहे के सरिए लगाकर दीवार बनाई गई जिस सड़क पर चलकर आप मेक्सिको जा सकते हैं. ट्रंप चाहते हैं कि पूरी दो हज़ार किलोमीटर की सीमा पर सीमेंट की दीवार बन जाए. कितना संभव है पता नहीं.
हम हार्लिंगन पहुंचे शाम को. छोटा सा शहर है जहां पता नहीं कौन ताड़ के पेड़ लगा गया है ढेर सारे. मैंने ज्यादा पूछा नहीं लेकिन ताड़ के बहुत सारे पेड़ों के कारण लगता है कि ये शहर समुद्र के पास होगा. गोवा जैसा महसूस हुआ. पता चला कि यहां से समंदर पैंतालीस मिनट की ड्राइव पर है. अमरीका में पैंतालीस मिनट की ड्राइव का मतलब करीब सौ किलोमीटर मान सकते हैं.
आर्टवर्क की शुरूआत
जेनिफर के बारे में एक अलग से ब्लॉग लिखूंगा इसलिए फिलहाल आर्ट प्रोजेक्ट और यूएस मेक्सिको सीमा पर रहते हैं. दूसरे दिन हम सब पहुंचे उस एनजीओ के यहां, जहां बिना दस्तावेज वाले लोग रह रहे हैं. इस संस्थान का नाम ला पोसाडा प्रोविडेंशिया है और इसे चर्च से जुड़ी सिस्टर्स चलाती हैं. हालांकि वहां कोई चर्च था नहीं.
हमें मिलाया गया करीब आठ नौ लोगों से जो अलग अलग देशों से यात्राएं कर के यहां पहुंचे थे. कोई ग्वाटेमाला से कोई होंडूरास से कोई मेक्सिको से तो कोई अफ्रीकी देश से था. उनके पास स्पैनिश के अलावा कोई और भाषा नहीं थी बातचीत की. अफ्रीका वाले ज़रूर अंग्रेजी और फ्रेंच बोल रहे थे लेकिन बहुत ज्यादा बातचीत कोई नहीं कर रहा था.
मी ने अपना साजो सामान निकाला और तय किया कि एयर ड्राई क्ले से काम करेंगे जो सबके लिए आसान रहेगा उससे कुछ कुछ बनाना. थोड़ी देर में और लोग आते गए और अपने मन से उन्हें जो समझ आया बनाने लगे.
कैसे आते हैं लोग अमरीका में
आप ये सोच रहे होंगे कि दूसरे देशों से लोग किस तरह से अमरीकी धरती पर आते हैं और ये घुसपैठ या अवैध रूप से आने की प्रक्रिया किस किस तरह की होती है. ये मामला स्पष्ट करता हूं.
तीन तरह से लोग आते हैं अमरीकी ज़मीन पर. एक तो वो जो वीसा लेकर आते हैं जो वैध तरीका है. हालांकि सबसे अधिक अवैध अप्रवासी इसी तरीके से आते हैं. वो वीसा लेकर आते हैं और वीसा की अवधि खत्म होने के बाद वापस नहीं जाते.
दूसरा तरीका है कि लोग अमरीका और मेक्सिको की आधिकारिक सड़क सीमा पर खड़े रहते हैं और जब बॉर्डर पेट्रोल उन्हें सीमा में आने देता है तो वो आने के बाद शरण की मांग करते हैं. अब बॉर्डर पुलिस उनसे पूछताछ करता है और पुलिस को जिनका मामला गंभीर लगता है उन्हें सीमा के भीतर लाकर ला पोसाडा जैसे एनजीओ के हवाले कर देता है जहां से वो कोर्ट में शरण की अपील करते हैं. शरण की अपील पर सुनवाई दो से तीन महीने या कभी कभी छह महीने तक चलती है. कई मामलों में शरण मिल जाती है. कई मामलों में उन्हें वापस भेज दिया जाता है उनके देश.
तीसरा और सबसे खतरनाक तरीका है कि आप तस्करों की मदद से लोहे की दीवार फांद कर या रेगिस्तान के रास्ते अमरीका में घुसते हैं. इन रास्तों पर कई बार लोग भटक कर मर भी जाते हैं. कई बार बॉर्डर पेट्रोल उन्हें पकड़ लेता है. पकड़े जाने के बाद उन्हें हिरासत में रखा जाता है जहां उनके मामले की सुनवाई होती है. ये सुनवाई जल्दी होती है और तय हो जाता है कि इन्हें शरण दिए जाने के अगले चरण में भेजा जाएगा या वापस उनके देश भेज दिया जाएगा.
ला पोसाडा में ऐसे लोग ही रहने आते हैं जिनके मामले कोर्ट में हैं. ला पोसाडा के अलावा कई और एनजीओ हैं जो इस तरह के लोगों को मदद करते हैं. उन्हें भोजन, रहने की जगह और अंग्रेजी की ट्रेनिंग मुहैया कराते हैं ताकि अगर उन्हें अमरीका में रहने की अनुमति मिले तो वो काम कर सकें.
तितलियां, सुपर मैन और बैटमैन
ला पोसाडा में काम शुरु करते हुए हमें ताकीद कर दी गई कि किसी के भी चेहरे की तस्वीर नहीं लेनी है क्योंकि सबके मामले कोर्ट में हैं और इनकी कहानियां प्रकाशित होने से इनका मामला कमज़ोर पड़ सकता है या नुकसान हो सकता है.
खैर हमने काम शुरु किया. मी ने तितलियां बनाने से शुरुआत की क्योंकि मी के दिमाग में ये बात थी कि तितलियां किसी देश की सीमा को नहीं समझती हैं. तितलियों से चल कर लोगों ने सुपर मैन, बैट मैन, केक, सूरज, फूल और न जाने क्या क्या बनाया दो दिनों में.
तीसरे दिन इन सभी को छोटे छोटे पेपर पर लगा कर ला पोसाडा के दरवाज़ों पर लगाकर हमारा काम पूरा हुआ.
भले ही यहां काम करने वाले लोग स्पैनिश बोल रहे थे लेकिन थोड़ी थोड़ी बातचीत में उनकी जो भी कहानियां समझ में आई उन सबको मिलाकर जो कहानी बनती है वो भयावह है. इन कहानियों को सच माना जाना चाहिए या नहीं हम ये भी नहीं कह सकते लेकिन झूठ मानने का कोई आधार भी नहीं है. कोई अपना देश छोड़कर दूसरे देश में यूं ही नहीं आ जाता.
पहले तो कुछ अनुभव बताता हूं उन लोगों के फिर अपनी समझ.
दो जवान लड़कियों के पिता
उनकी उमर करीब पचास पचपन की होगी. उनकी पत्नी मोटी सी थीं और खूब बातूनी भी. दो बेटियां एक पंद्रह साल की और एक तेरह साल की. ग्वाटेमाला से पांच महीने पैदल, ट्रेन, बस और नाव के रास्ते अमरीका में आए और अब मामला कोर्ट में है. मैंने पूछा कि कैसा था सफर तो उनकी पत्नी का जवाब था- हमने इसे एडवेंचर के तौर पर लिया तो बस समझो पूरा हो गया.
उनके पति कम बोलते हैं. नहीं के बराबर. उनका एक हाथ खराब है. ग्वाटेमाला में गैंग्स सक्रिय हैं जो ड्रग्स का व्यापार करते हैं और छोटे मोटे दुकानदारों से भी वसूली करते हैं. ऐसे में दो जवान बेटियों के साथ रहना कितना कठिन होगा वो उस पिता के बेजान चेहरे से समझा जा सकता है.
जवान बेटा और उसका पिता
ये दोनों यूं तो खुश थे लेकिन दूसरे दिन बातचीत में पता चला कि ये आदमी अपना आधा परिवार अपने देश होंडूरास में छोड़ कर आया है अमरीका. मैंने पूछा कि और कौन कौन है परिवार में तो उसकी आवाज़ भर आई. उसने कहा- मेरी बीवी और दो छोटे बच्चे हैं. एक चार साल का और एक डेढ़ साल की बच्ची है. मैं यहां कमा के पैसे भेजूंगा. कोशिश करूंगा उन्हें भी वहां लाने की.
अमरीका आने की ज़रूरत ही क्या थी इस सवाल पर वो चुप रहे फिर टूटी फूटी अंग्रेजी में बोले- आप भारत से हैं. वहां गरीबी नहीं है क्या. मैंने कहा कि गरीबी है तो लेकिन इतनी नहीं कि दूसरे देश चला जाए आदमी. फिर उसने कहा गैंग्स हैं आपके यहां. मैंने कहा हैं लेकिन आम लोगों को तंग नहीं करते. मेरी ये बात सुनकर वो संतुष्ट सा दिखा और चुपचाप चला गया.
मेक्सिको की लड़की
यूं तो मेक्सिको से अब बहुत कम लोग अवैध रूप से अमरीका में आते हैं लेकिन एक महिला थी जिसके पास तीन महीने की एक बच्ची थी. उसने मी को बताया कि उसका पति किसी गैंग में शामिल है और उनके साथ लगातार मार पीट करता था इसलिए वो भाग गई मेक्सिको छोड़कर.
ऐसे कई और मामले थे. ग्वाटेमाला होंडूरास के अलावा अफ्रीकी देश कांगो, अंगोला से भी कई लोग थे लेकिन वो हमसे बिल्कुल बात नहीं कर रहे थे. उनकी यात्राएं कई पड़ाव वाली थीं. अफ्रीका से वैध रूप से सेंट्रल अमरीका आना और फिर वहां से मानव तस्करों के ज़रिए महीनों की यात्रा कर के मेक्सिको अमरीकी सीमा तक पहुंचना आसान नहीं रहा होगा.
हमारी समझ
मानव तस्करी से जुड़ी डॉक्यूमेंट्रीज़, अखबार और इस मामले के एक्सपर्ट्स से बात करने के बाद मोटा मोटा मेरी कुछ ऐसी समझ बनती है. अफ्रीका में तो हालात सुरक्षित नहीं ही हैं. जहां जहां सरकारें कमज़ोर हैं वहां गैंग्स ताकतवर हैं. लातिन अमरीकी देश खासकर मेक्सिको, ग्वाटेमाला, अल सल्वाडोर और होंडूरास में गरीबी भयंकर है और ड्रग्स का धंधा ज़ोरों पर.
कोलंबिया के ड्रग्स बादशाह पाब्लो एस्कोबार के मारे जाने के बाद ड्रग्स का व्यापार छिन्न भिन्न हुआ है और गैंग्स कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं पूरे सेंट्र्ल अमरीका में. समाज और आम जन से परे बंदूकों के साथ जीने वाले ये गैंग किसी के भी सगे नहीं हैं. ड्रग्स से पैसा न आए तो आम लोगों से पैसा वसूलो. जवान लड़कों को जबरन गैंग्स में शामिल करना और धंधा चलाए रखना. मोटा मोटा ऐसे भयंकर जीवन से लोग भाग भाग कर अमरीका आ रहे हैं.
कह सकते हैं कि गरीबी और जान के खतरे के कारण इन देशों से लोग अमरीका आ रहे हैं जहां उन्हें खेतों में काम मिल जाता है. अमरीका में अब गोरे किसान अपने बड़े खेतों में खुद से काम नहीं करते. सारा काम मेक्सिको के गरीब लोग आकर करते है उनकी खेती का काम.
पहले ये काम गुलामी प्रथा के दौरान काले लोग करते थे लेकिन अब काले लोग खेती बाड़ी के काम से अलग हो गए हैं क्योंकि ये उनके गुलामी के दिनों की याद भी है और साथ ही काले लोगों के पास खेती के लिए उतनी ज़मीन कभी नहीं रही.
अब ये काम कम पैसे में सेंट्रल अमरीका के लोग आकर करते हैं. कितने लोग हर साल इन देशों से अमरीका आते हैं इसका आकड़ा तो मेरे पास नहीं है लेकिन इस साल अवैध तरीके से सीमा पार करते हुए पकड़े गए लोगों की संख्या साठ हज़ार है. समझिए इतने ही और आते होंगे तो हर साल करीबन लाख लोग आते हैं इन रास्तों से अमरीका में.
सीमा एक जटिल मसला है. मानवाधिकार कार्यकर्ता मानते हैं कि देशों के बीच सीमाएं होनी ही नहीं चाहिए जो एक यूटोपियन आइडिया है. खैर हमारे लिए इन लोगों के साथ आर्ट करना एक अलग किस्म का ही अनुभव रहा है. आर्ट के साथ साथ एक और अनुभव बताते जाना ज़रूरी होगा.
चूंकि हमने गुरूवार और शुक्रवार को काम किया तो इच्छा जगी कि सीमा भी देखी जाए तो जेनिफर हमें शनिवार और रविवार को दो सीमाएं दिखाने ले गईं.
पहली सीमा और पुलिस का सामना
हार्लिंगन शहर से करीब एक घंटे की दूरी पर सीमा पर बसा शहर है मैककुलन. हम शहर के उस छोर तक गए जहां से सौ मीटर के बाद मेक्सिको की आधिकारिक सीमा लगती है. लगातार कारें जा रही थीं मेक्सिको की तरफ और लगातार कारें आ रही थीं वहां से. जेनिफर ने बताया कि अमरीकी लोगों को मेक्सिको जाने के लिए वीसा की ज़रूरत नहीं होती है एक निश्चित दूरी तक. यानी कि वो मेक्सिको के सीमावर्ती शहरों में बिना वीसा के सिर्फ पासपोर्ट के साथ जा सकती हैं.
हम मुख्य रास्ते को छोड़कर एक किनारे को चले ताकि सीमा पर लगी दीवार को देख सकें. एक सुंदर से पार्क से होते हुए जब हम जंगल की ओर बढ़े तो ये लोहे की दीवार दिखी. जेनी ने बताया कि यही दीवार है. हमने तस्वीरें खिंचवाई और करीब दो सौ मीटर लंबी दीवार के साथ बनी ऊंची जमीन पर चलते हुए सड़क की ओर जाने लगे.
दीवार के दूसरी तरफ जंगल ही जंगल थे. जेनी ने बताया कि आगे रियो ग्रांडे नदी है और लोग डोंगियों में नदी पार कर के आते हैं और फिर सीढ़ी की मदद से इस लोहे की दीवार को फांद कर अमरीका में घुस जाते हैं.
रास्ते में बड़े सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए थे. हम जब लौटने लगे तो अचानक से पुलिस की गाड़ियां आई और हमारे सामने आकर रूकीं. जिस तेज़ी से एक पुलिसवाला गाड़ी से निकला हम डर गए कि आखिर क्या हो गया.
उसने सवाल किया- आप लोग कौन हैं और यहां क्या कर रहे हैं. हमने कहा हम बॉर्डर देखने आए हैं.
आपने अभी किसी और को देखा है
नहीं. हम तो बस ये चार लोग हैं.
इतने में दूसरी गाड़ी आई जिसमें से महिला पुलिस और एक और पुलिसवाला आया. दोनों गाड़ियों के पुलिसवालों ने आपस में कुछ बात की और पहला पुलिसकर्मी गाड़ी लेकर निकल गया. अब दूसरी गाड़ी से निकली महिला एकदम हमारे सामने थी.
उसने मुस्कुराते हुए कहा. आपको बुरा तो नहीं लगेगा अगर मैं कुछ पूछूं तो. हमने कहा – बिल्कुल नहीं.
उसने हमें देखा और पूछा कि हम कहां से हैं और यहां क्या कर रहे हैं. जवाब प्रोफेसर जेनी ने दिया और बताया कि वो यहीं पढ़ाती हैं. जवाब सुनकर वो संतुष्ट हुई और फिर जेनी का स्वेटर छूते हुए बोलीं, ‘शायद आपकी इस ग्रे स्वेटर से गड़बड़ हुई है. हमें कैमरे में ये सफेद दिखा होगा. यहां से दीवार फांदने वाले सफेद कपड़ों में दीवार फांदते हैं ताकि कैमरे में न दिखे. लेकिन आप सबने तो काले कपड़े पहने हैं. ये ग्रे स्वेटर ही सफेद लगा होगा कैमरे में.’
हमारी सांस में सांस आई फिर मैंने कहा कि मैंने तो भारत पाकिस्तान सीमा देखी थी तो सोचा ये भी देख लें तो वो पूछने लगे कि वो सीमा कैसी है. मैंने बताय कि वहां तो भारी सुरक्षा बंदोबस्त है. आपके यहां तो ये बिल्कुल खुला खुला है. इस बात पर हम सब हंसे और वापस चल दिए.
दूसरे देश में पुलिस भले ही विनम्र हो लेकिन आदमी डर जाता है. मैंने पहली बार ये डर महसूस किया.
खैर वहां से निकल कर हम एक और सीमा पर पहुंचे जहां रियो ग्रांडे नदी को ही सीमा के तौर पर देखा जा सकता है. नदी का पाट बहुत चौड़ा भी नहीं और एक किनारे खड़े होकर आप दूसरे किनारे पर मेक्सिको को देख सकते हैं. कहते हैं कि नदी के आगे कि हिस्सों में भी लोग डोंगियों से सीमा पार करते हैं.
दूसरी सीमा जो एक कॉलेज से होकर गुजरती है
रविवार को जेनी हमें अपने कॉलेज ले गई जहां वो पढ़ाती हैं. कॉलेज परिसर में घुसने के बाद उन्होंने बताया कि ये कॉलेज सीमा के पास ही है बिल्कुल और कॉलेज से होकर सीमा जाती है.
हम ये सुनकर चकित हुए और कहा कि ऐसा कैसे संभव है. हमारे इतना कहते ही वो हमें कार पार्किंग में ले गईं जहां हरे रंग की जालियां लगी थीं.
जेनिफर ने बताया कि ये हरी जालियां ही अमरीका मेक्सिको की सीमा है इस जगह पर. हमें चकित देखकर जेनी ने पूरी बात बताई. हुआ ये कि इस जगह पर भी दीवार बनाई जानी थी लेकिन कॉलेज के प्रेसिडेंट ने कोर्ट में अर्ज़ी डाल दी. कोर्ट कचहरी के बाद फैसला ये हुआ कि सीमा तो बनेगी लेकिन ये कैसी होगी ये कॉलेज तय करेगा. कॉलेज के प्रबंधन ने तय किया की सीमा खूबसूरत होगी. हरी हरी घास और हरे रंग की ही जाली.
इसका वीडियो आप #365days of Mee&Jey में देख चुके हैं लेकिन जिन्होंने नहीं देखा वो यहां देख सकते हैं.
इस जगह से थोड़ी दूर लंबी दीवार है लोहे की जहां से वो ब्रिज दिखाई पड़ता है जिसे पार कर के मेक्सिको जाया जा सकता है. हर दिन मेक्सिको से कई लोग यहां शॉपिंग करने भी आते हैं. उन्हें एक दिन का भी वीसा मिलता है. ब्राउन्सविले शहर अमरीका कम मेक्सिको जैसा अधिक फील देता है. लोगों के चेहरे मोहरे बिल्कुल अलग दिखते हैं. दुकानें भी अलग जिनमें सस्ता सामान मिल रहा होता है. हमने जेनी से कहा तो वो मुस्कुराईं और बताया कि इस शहर में बहुत सारे मेक्सिको के लोग आते जाते हैं इसलिए ये मिक्स है पूरा.
इस सीमा पर भी कई जगहों पर लोहे और सीमेंट की दीवारें बनी हुई थीं लेकिन दो हज़ार किलोमीटर की सीमा पर कहां कहां और कैसे ये पूरी दीवार बनेगी ये इस समय अमरीकी राजनीति का सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है.
Very nice
Thank you Rupesh
शानदार भाईसाहब बहुत बड़ा है मगर अच्छा
पढ़ कर लगा वहाँ भी लोग संघर्ष करते है जीने को ओर मदद करने को भी
शुक्रिया……प्रेम जी
Bahut hi achchhi jaankari. Thanks.
शुक्रिया……नलिन जी. आपने तो आर्टोलॉग को शुरुआती दिनों से बहुत हौसला दिया है. आज आपकी टिप्पणी से हिम्मत और बढ़ी.
अब थोड़ा थोड़ा समझ आ रहा है…. सीमा अच्छी तो नहीं होती, पर जरूरी होती हैं….
Kash hamre yaha bi esi simaye hoti
आपका कमेंट समझ में नहीं आया. समस्या क्यों चाहिए भारत में आपको
पंछी नदिया पवन के झोंके 😉
मज़ा आया पढ़ कर, पर आप कुछ ख़ास रसीला नहीं लिखतें। शायद पत्रकार वाली रिपोर्टिंग सरीखी ख़ुश्क़ी मौजूद रहती है। फिर यह है भी तो आर्टोलोग, कोई साहित्य रचना तो नहीं। सो जो भी है अच्छा है। अन्यथा ना लें, बस एक फ़ीड्बैक है, थोड़ा कहानी जैसा लिखेंगे तो ज़्यादा लोग आकर्षित हो पाएँ शायद। ज़्यादा लोग जुड़ पाएँ। ( एस॰ पी॰ पत्रकारिता में साहित्य के घुसने को वासना शब्द का नाम देते थें, जैसे राजनेताओं की होती है, फिर उनके ज़माने में ब्लॉगिंग भी तो नहीं थी।)
आप लोगों का काम बड़ा शानदार होता है, साहस भरा। बहुत कुछ सीखने को मिलता है। यहाँ भी मिला। आपकी ३६५ दिन वाली सिरीज़ के बारे में पता चला, YouTube पर। वहाँ कॉमेंट करता हूँ, उसके बारे में।
मित्रसेन।
प्रिय मित्रसेन,
फीडबैक के लिए शुक्रिया. साहित्यकार होता तो कहानी जैसा लिखता लेकिन कल्पना तो है नहीं कि रसीला लिखूं. वो कार्य साहित्यकारों और कल्पना करने वालों के लिए छोड़ रखा है. ट्रैवलॉग है जो देखा वो लिखा. जाहिर है आर्टोलॉग एक अलग किस्म का प्रोजेक्ट है. ये यायवारी भी नहीं कि इसमें कल्पना की बेवजह छौंक लगे. अन्यथा नहीं ले रहा हूं ईमानदारी से अपनी बात रख रहा हूं. मुझे न तो लोगों को आकर्षित करना और न जोड़ना है भाषा और कल्पना की छौंक लगाकर. जो दिखता है वो लिखता हूं इस ब्लॉग में क्योंकि ये एक किस्म का दस्तावेजीकरण है आर्ट और ट्रैवल का. दस्तावेजीकरण के काम को साहित्य से न जोड़ पाना ही श्रेयस्कर है.
हमसे आपने थोड़ा सा भी जो सीखा उसके लिए शुक्रिया. मी ने आर्ट किया मैं बस उसे लिपिबद्ध करता हूं अनुभव को.
एस पी क्या कहते थे ये तो मैंने नहीं पढ़ा लेकिन दुनिया के कई जाने माने साहित्यकार मूल रूप से पत्रकार हुए हैं अपने जीवन में. गैब्रियल गार्सिया मार्केज से लेकर जॉर्ज ऑरवेल तक और एच जी वेल्स से लेकर रिस्जार्ड कापूजिंस्की तक. इसलिए मैं ये तो नहीं कह सकता कि पत्रकारिता में साहित्य का घुसना वासना है या नहीं.
365 days पर अपनी टिप्पणी देंगे तो भी अच्छा लगेगा
एक बार फिर से- मेरी टिप्पणी को भी अन्यथा न लें. आपकी टिप्पणी पढ़ कर जो लगा वो मैंने जवाब में लिखा बिना किसी दुर्भावना के या खुद को सही साबित करने की गरज से.
सिंबॉकिल रूप से, वहां उस जगह दो देशों की सीमा पर तितलियों की कलाकृति बनाना, मेरी समझ से तो दुनिया को बहुत बड़ा संदेश देने जैसा है… आप तीनों को बहुत शुभकामनाएं!
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