गुलेल, चिकन और यादें….

हज़ारीबाग जाना नहीं था लेकिन कहते हैं न यात्राओं में पता नहीं होता आप कहां से कहां पहुंच जाते हैं. जब भागलपुर में थे तो शशि से बात हुई तो शशि ने कहा कि अगर हम हज़ारीबाग जाएंगे तो वो मुंबई से हमसे मिलने आ जाएंगे. शशि को हम फेसबुक से ही जानते थे और[…]

संथाल टोला- मस्ती, रंग और वो देसी मुर्गा

संथाल टोला सुनते ही मुझे फूदन माझी की याद आती है. उसका सरसों के तेल में चुपड़ा बदन और उसकी वो बांसुरी. ये पुरानी बात है. अब मालूम भी नहीं फूदन माझी कहां है. आज हम लोग कल्याण टुडू के घर पर हैं जहां माझी थान यानी उनके भगवान के घर को रंगना है. मदद[…]