छह दिन काम फिर एक दिन आराम

IMG_1272पुणे से चेन्नई तक के सफर में एक पेंटिंग का ज़िक्र नहीं हो पाया है. कई कारणों से. एक तो हम थके हुए थे. वापस दिल्ली पहुंचे थे. कई दोस्तों से दिल्ली में मिलना था तो समय नहीं मिल पाया.

असल में चेन्नई में की गई पेंटिंग भी कुछ ऐसी ही थी. काम और आराम को लेकर.

आम तौर पर लोग अपनी उन पेंटिंगों के बारे में बात भी नहीं करना चाहते जिनसे वो खुद संतुष्ट न हों. शायद हम भी चेन्नई में की गई पेंटिंग से संतुष्ट नहीं थे. असल में वो आइडिया ही कुछ ऐसा था जिस पर दो या तीन दिन में कुछ बेहतरीन कर पाना हम लोगों के लिए मुश्किल था.

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पेंटिंग तो बनी लेकिन हमारे ज़ेहन में यही रहा कि इससे बेहतर हो सकता है. चलिए तस्वीर तो आपने देख ली. आइडिया शेयर कर रहा हूं. यूंं तो आजकल के ज़माने में कहा जाता है कि आइडिया शेयर न करें लेकिन हम तो ठहरे पागल. हम शेयर करते हैं लोगों से सबकुछ ताकि वो भी शेयर करें. हम उनसे वो हमसे कुछ कुछ सीख पाएं.

आईआईटी मद्रास में हम तबरेज़ के साथ रुके थे. तबरेज़ हमारे पुराने दोस्त हैं और उनसे बहुत कुछ सीखा है. उन्होंंने कहा कि दीवारों पर अगर रंगों से कुछ ऐसा बन जाए कि……” बनाने वाले ने छह दिन में ये दुनिया बनाई और सातवें दिन आराम किया.” अगर ये भाव रंगों से व्यक्त हो सके तो क्या बात होगी.

शर्त ये है कि न तो मनुष्य और न ही जानवरों की कोई आकृति हो. बस रंग हों. तबरेज़ से ऐसे ही ऐब्सट्रैक्ट और चुनौतीपूर्ण आइडिया की उम्मीद थी. उसे हम बरसों से जानते हैं. वो ऐसा ही है. हमसे कोई ऐसी बात करता जिसके बाद हम सोचने पर मज़बूर हो जाएं.

हमने कुछ बनाया जो हम सभी को अच्छा लगा लेकिन साथ ही मन में ये बात भी रही कि ये आइडिया इतना बेहतरीन है कि इस पर आगे कुछ करना होगा.

हम अब भी इस आइडिया पर सोच रहे हैं और मीनाक्षी जब भी कुछ बनाएगी हम ज़रुर शेयर करेंगे.

महीने भर का दौरा खत्म हुआ है लेकिन अभी दिल्ली और आसपास हम जाते रहेंगे. पटना, कश्मीर, गुजरात, लखनऊ, बंबई, देहरादून से कई लोगों ने फेसबुक और ईमेल के ज़रिए हमसे संपर्क किया है.

हम धीरे धीरे कार्यक्रम बनाएंगे और आपसे संपर्क करेंगे. फिलहाल अगर आप दिल्ली के आसपास हों तो संपर्क करें. दिल्ली के आसपास वीकेंड में जाकर पेंट करना हमारे लिए आसान रहेगा.

ईमेल है- meejha@gmail.com

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