गुलेल, चिकन और यादें….

The painting in a village in Hazaribagh

The painting in a village in Hazaribagh

हज़ारीबाग जाना नहीं था लेकिन कहते हैं न यात्राओं में पता नहीं होता आप कहां से कहां पहुंच जाते हैं.

जब भागलपुर में थे तो शशि से बात हुई तो शशि ने कहा कि अगर हम हज़ारीबाग जाएंगे तो वो मुंबई से हमसे मिलने आ जाएंगे.

शशि को हम फेसबुक से ही जानते थे और फोन पर एक दो बार बातचीत हुई थी. हमें आश्चर्य हो रहा था कि शशि सिर्फ हमसे मिलने मुंबई से आने को तैयार है हज़ारीबाग तो हम भी अपना कार्यक्रम थोड़ा बदल सकते हैं.

The time in hazaribagh spent with shashi and mona is one of the best periods in our jouney

The time in hazaribagh spent with shashi and mona is one of the best periods in our jouney

फिर हमने रुट बदला और बेगूसराय, बिहार शरीफ होते हुए उन दोनों जगहों पर पेंट करते हुए हज़ारीबाग पहुंचे.

अब सोचिए. हम शशि के दोस्त और ठहरे शशि के एक और दोस्त मोना के यहां. मतलब दोस्त के दोस्त के घर रुके और फिर मोना के एक दोस्त की शादी में गए.

The enjoyable moments

The enjoyable moments

अब सोचिए दोस्त के दोस्त के दोस्त की शादी. खैर हज़ारीबाग शहर से अलग बड़कागांव की तरफ एक सुंदर छोटे से पहाड़ों की गोद में बसे गांव में शादी का आनंद इस लोक से परे ही कहा जा सकता है.

The marriage ceremony. simple and beautiful

The marriage ceremony. simple and beautiful

पहला दिन ऐसा बीता लेकिन दूसरे दिन का अनुभव और भी अलग था.

Dance after the marriage.

Dance after the marriage.

मोना ने तय किया कि वो हमें एक और व्यक्ति से मिलाना चाहती हैं. दीनू से.

दीनू आदिवासी है और बिल्कुल जंगल में बसे एक गांव में रहते हैं. दीनू और मोना का रिश्ता बस इतना सा है कि दीनू रिक्शा चलाता है और जब मोना के पापा की एक बार तबीयत ख़राब  हुई थी तो दीनू अपनी रिक्शा में लेकर उनके पापा को घर तक ले आया था.

तब से मोना और दीनू एक परिवार जैसे हो गए हैं.

दीनू के चार बेटे है जो अलग अलग शहरों में मज़दूरी करते हैं. दीनू का घर सुंदर सा है मिट्टी का. उनके पैर में चोट थी और कुछ ही सप्ताह पहले ऑपरेशन हुआ था. अब वो शायद ही रिक्शा चला पाएंगे.

We painted two walls in Dinoo's house

We painted two walls in Dinoo’s house

बातों बातों में हमने पूछा कि आप तो खेती करते हैं तो फिर रिक्शा क्यों. दीनू ने बताया कि आदिवासी गांवों में या कहिए उनके गांवों में हर व्यक्ति उतनी ही खेती कर सकता है जितना वो खुद जोत सके. मज़दूर रखकर खेती नहीं करवा सकता कोई.

है न मज़ेदार व्यवस्था.

Shashi painted with Meenakshi

Shashi painted with Meenakshi

ऐसे में दीनू को नगद की दिक्कत हो जाती है. इसी कारण वो हफ्ते में तीन दिन हज़ारीबाग जाते हैं रिक्शा चलाने.

ख़ैर तय हुआ कि दीनू हमें खास किस्म का चिकन खिलाएंगे जो मिट्टी में गड्ढा खोदकर साल के पत्ते में पकाया जाएगा और खाना भी साल के पत्ते में खाया जाएगा जैसे वो खाते हैं.

हमने कहा बदले में हम आपके घर की दीवारें पेंट करेंगे.

मीनाक्षी ने रंग उठाए और शुरु हो गया काम. जे हमेशा से कहता था कि आदिवासियों के घर मिट्टी के बने होते हैं लेकिन उनकी फिनिशिंग सीमेंट से भी बेहतर होती है. मैंने ये चीज़ पूर्णिया में कल्याण टुडू के घर में देख चुके थे.

दीनू के घर की दीवारें सीमेंट की दीवारों से सुंदरता में बीस ही थी. जो बन पड़ा हमने बनाया. रंग भी उनके घरों के सामान से ही बनाए. धीरे धीरे घर के बच्चे भी जुट गए काम में.

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फिर क्या था. कुत्ते, बकरियां, सुअर सब मंडराने लगे हमारे चारों तरफ. जंगल के जीवन का यही असल मज़ा है. आदमी-जानवर-प्रकृति सब साथ में होते हैं.

दीनू एक लाठी पर घूमते घूमते बार बार हमारे पास आते और देखते. थोड़ी बातचीत करते. हमने फरमाइश की थोड़ी सी हंडिया की भी जो उन्होंने चट से मंगवा दिया.

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दोपहर तक काम खत्म हुआ पेंटिंग का और इसी बीच एक पड़ोस की महिला आई और बोली कि उनके घर में अगले हफ्ते शादी है तो क्या हम पेंट कर देंगे उनके दरवाज़े.

हमने हामी भरी लेकिन कर नहीं पाए. खैर देर दोपहर पेंटिंग खत्म होने के बाद जब खाने बैठे तो साल के दोने और पत्तल में मुर्गे का स्वाद दिव्य ही लगा.

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शशि और मोना हम दोनों की खुशी देखकर चुपचाप मुस्कुराए. शायद शशि पहले मिल चुके थे दीनू से. दीनू भी खुश लगे. जाते समय उन्होंने जे को गुलेल दी क्योंकि पूरे समय जे गुलेल से खेलता रहा था.

दीनू ने कहा – हम गुलेल का खूब इस्तेमाल करते हैं खेत से जानवर भगाने में, बेर तोड़ने में. आप ले जाइए ये एक हमारी याद.

गुलेल हमारे साथ है हमारे घर में. मुर्गे का स्वाद है हमारे मुंह में और दीनू की याद हमारे जेहन में.

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